Shekhawati University,Sikar

Friday 30 September 2016

Navratra puja Method

Navratri puja Method:नवरात्र कल से,इस विधि से करें घट स्थापना, ये हैं शुभ मुहूर्त

मां शक्ति की आराधना का पर्व शारदीय नवरात्र 1 अक्टूबर, शनिवार से शुरू हो रहा है, जो 10 अक्टूबर, सोमवार तक रहेगा। नवरात्र में तृतीया तिथि दो दिन 3 से 4 अक्टूबर तक रहेगी। इसलिए नवरात्रि नौ की बजाए 10 दिन की होगी। नवरात्र के पहले दिन माता दुर्गा की प्रतिमा तथा घट (कलश) की स्थापना की जाती है। इसके बाद ही नवरात्र उत्सव का प्रारंभ होता है। माता दुर्गा व घट स्थापना की विधि इस प्रकार हैं-
Navratra puja Method


Navratri puja ध्यान रखें ये 3 बातें

 
1. नवरात्र में माता दुर्गा के सामने नौ दिन तक अखंड ज्योत जलाई जाती है। यह अखंड ज्योत माता के प्रति आपकी अखंड आस्था का प्रतीक स्वरूप होती है। माता के सामने एक एक तेल व एक शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए।
 
2.मान्यता के अनुसार, मंत्र महोदधि (मंत्रों की शास्त्र पुस्तिका) के अनुसार दीपक या अग्नि के समक्ष किए गए जाप का साधक को हजार गुना फल प्राप्त हो है। कहा जाता है-
दीपम घृत युतम दक्षे, तेल युत: च वामत:।
अर्थात- घी का दीपक देवी के दाहिनी ओर तथा तेल वाला दीपक देवी के बाईं ओर रखना चाहिए।
 
3. अखंड ज्योत पूरे नौ दिनों तक जलती रहनी चाहिए। इसके लिए एक छोटे दीपक का प्रयोग करें। जब अखंड ज्योत में घी डालना हो, बत्ती ठीक करनी हो तो या गुल झाड़ना हो तो छोटा दीपक अखंड दीपक की लौ से जलाकर अलग रख लें।
 
4. यदि अखंड दीपक को ठीक करते हुए ज्योत बुझ जाती है तो छोटे दीपक की लौ से अखंड ज्योत पुन: जलाई जा सकती है छोटे दीपक की लौ को घी में डूबोकर ही बुझाएं।

Durga Mataji Aarti:इस आसान विधि से करें मां दुर्गा की आरती

हिंदू धर्म में प्रत्येक धार्मिक कर्म-कांड के बाद भगवान की आरती उतारने का विधान है। भगवान की आरती उतारने के भी कुछ विशेष नियम होते हैं। ध्यान देने योग्य बात है कि देवताओं के सम्मुख चौदह बार आरती उतारना चाहिए। चार बार चरणों पर से, दो बार नाभि पर से, एक बार मुख पर से तथा सात बार पूरे शरीर पर से। आरती की बत्तियाँ 1, 5, 7 अर्थात विषम संख्या में ही बनाकर आरती की जानी चाहिए।
 
 

मां दुर्गा की आरती

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥1॥ जय अम्बे...
माँग सिंदूर विराजत टीको मृगमदको।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चन्द्रवदन नीको ॥2॥ जय अम्बे....
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्त-पुष्प गल माला, कण्ठन पर साजै ॥3॥ जय अम्बे...
केहरी वाहन राजत, खड्ग खपर धारी।
सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुखहरी ॥4॥ जय अम्बे...
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योति ॥5॥ जय अम्बे...
शुंभ निशुंभ विदारे, महिषासुर-धाती।
धूम्रविलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥6॥ जय अम्बे...
चण्ड मुण्ड संहारे, शोणितबीज हरे।
मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे ॥7॥ जय अम्बे...
ब्रह्माणी, रूद्राणी तुम कमलारानी।
आगम-निगम-बखानी, तुम शिव पटरानी ॥8॥ जय अम्बे...
चौसठ योगिनि गावत, नृत्य करत भैरूँ।
बाजत ताल मृदंगा औ बाजत डमरू ॥9॥ जय अम्बे...
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।
भक्तन की दुख हरता सुख सम्पति करता ॥10॥ जय अम्बे...
भुजा चार अति शोभित, वर मुद्रा धारी।
मनवाञ्छित फल पावत, सेवत नर-नारी ॥11॥ जय अम्बे...
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
(श्री) मालकेतु में राजत कोटिरतन ज्योती ॥12॥ जय अम्बे...
(श्री) अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख सम्पति पावै ॥13॥ जय अम्बे...

Thursday 29 September 2016

Guruvar Brihaspativar Vrat Katha In Hindi

Guruvar Brihaspativar Vrat Katha In Hindi

Guruvar Brihaspativar Vrat Puja Method

Guruvar Brihaspativar Vrat Katha In Hindi

बृहस्पतिवार को जो स्त्री-पुरुष व्रत करें उनको चाहिए कि वह दिन में एक ही समय भोजन करें क्योंकि बृहस्पतेश्वर भगवान का इस दिन पूजन होता है भोजन पीले चने की दाल आदि का करें परन्तु नमक नहीं खावें और पीले वस्त्र पहनें, पीले ही फलों का प्रयोग करें, पीले चन्दन से पूजन करें, पूजन के बाद प्रेमपूर्वक गुरु महाराज की कथा सुननी चाहिए। इस व्रत को करने से मन की इच्छाएं पूरी होती हैं और बृहस्पति महाराज प्रसन्न होते हैं तथा धन, पुत्र विद्या तथा मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है। परिवार को सुख शान्ति मिलती है, इसलिए यह व्रत सर्वश्रेष्ठ और अति फलदायक, सब स्त्री व पुरुषों के लिए है। इस व्रत में केले का पूजन करना चाहिए। कथा और पूजन के समय तन, मन, क्रम, वचन से शुद्ध होकर जो इच्छा हो बृहस्पतिदेव की प्रार्थना करनी चाहिए। उनकी इच्छाओं को बृहस्पतिदेव अवश्य पूर्ण करते हैं ऐसा मन में दृढ़ विश्वास रखना चाहिए।

भारतवर्ष में एक राजा राज्य करता था वह बड़ा प्रतापी और दानी था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्‌मणों की सहायता करता था। यह बात उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी, वह न ही गरीबों को दान देती न ही भगवान का पूजन करती थी और राजा को भी दान देने से मना किया करती थी।

एक दिन राजा शिकार खेलने वन को गए हुए थे तो रानी महल में अकेली थी। उसी समय बृहस्पतिदेव साधु वेष में राजा के महल में भिक्षा के लिए गए और भिक्षा मांगी रानी ने भिक्षा देने से इन्कार किया और कहा- हे साधु महाराज मैं तो दान पुण्य से तंग आ गई हूं। मेरा पति सारा धन लुटाता रहता है। मेरी इच्छा है कि हमारा धन नष्ट हो जाए फिर न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी।

साधु ने कहा- देवी तुम तो बड़ी अजीब हो। धन, सन्तान तो सभी चाहते हैं। पुत्र और लक्ष्मी तो पापी के घर भी होने चाहिए। यदि तुम्हारे पास अधिक धन है तो भूखों को भोजन दो, प्यासों के लिए प्याऊ बनवाओ, मुसाफिरों के लिए धर्मशालाएं खुलवाओ। जो निर्धन अपनी कुंवारी कन्याओं का विवाह नहीं कर सकते उनका विवाह करा दो। ऐसे और कई काम हैं जिनके करने से तुम्हारा यश लोक-परलोक में फैलेगा। परन्तु रानी पर उपदेश का कोई प्रभाव न पड़ा। वह बोली- महाराज आप मुझे कुछ न समझाएं। मैं ऐसा धन नहीं चाहती जो हर जगह बांटती फिरूं। साधु ने उत्तर दिया यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो तथास्तु! तुम ऐसा करना कि बृहस्पतिवार को घर लीपकर पीली मिट्‌टी से अपना सिर धोकर स्नान करना, भट्‌टी चढ़ाकर कपड़े धोना, ऐसा करने से आपका सारा धन नष्ट हो जाएगा। इतना कहकर वह साधु महाराज वहां से आलोप हो गये।

जैसे वह साधु कह कर गया था रानी ने वैसा ही किया। छः बृहस्पतिवार ही बीते थे कि उसका समस्त धन नष्ट हो गया और भोजन के लिए दोनों तरसने लगे। सांसारिक भोगों से दुखी रहने लगे। तब वह राजा रानी से कहने लगा कि तुम यहां पर रहो मैं दूसरे देश में जाउं क्योंकि यहां पर मुझे सभी मनुष्य जानते हैं इसलिए कोई कार्य नहीं कर सकता। देश चोरी परदेश भीख बराबर है ऐसा कहकर राजा परदेश चला गया वहां जंगल को जाता और लकड़ी काटकर लाता और शहर में बेंचता इस तरह जीवन व्यतीत करने लगा।

एक दिन दुःखी होकर जंगल में एक पेड के नीचे आसन जमाकर बैठ गया। वह अपनी दशा को याद करके व्याकुल होने लगा। बृहस्पतिवार का दिन था। एकाएक उसने देखा कि निर्जन वन में एक साधु प्रकट हुए। वह साधु वेष में स्वयं बृहस्पति देवता थे। लकड हारे के सामने आकर बोले- हे लकड हारे! इस सुनसान जंगल में तू चिन्ता मग्न क्यों बैठा है? लकड हारे ने दोनों हाथ जोड कर प्रणाम किया और उत्तर दिया- महात्मा जी! आप सब कुछ जानते हैं मैं क्या कहूं। यह कहकर रोने लगा और साधु को आत्मकथा सुनाई। महात्मा जी ने कहा- तुम्हारी स्त्री ने बृहस्पति के दिन वीर भगवान का निरादर किया है जिसके कारण रुष्ट होकर उन्होंने तुम्हारी यह दशा कर दी। अब तुम चिन्ता को दूर करके मेरे कहने पर चलो तो तुम्हारे सब कष्ट दूर हो जायेंगे और भगवान पहले से भी अधिक सम्पत्ति देंगे। तुम बृहस्पति के दि कथा किया करो। दो पैसे के चने मुनक्का मंगवाकर उसका प्रसाद बनाओ और शुद्ध जल से लोटे में शक्कर मिलाकर अमृत तैयार करो। कथा के पश्चात अपने सारे परिवार और सुनने वाले प्रेमियों में अमृत व प्रसाद बांटकर आप भी ग्रहण करो। ऐसा करने से भगवान तुम्हारी सब कामनायें पूरी करेंगे।

साधु के ऐसे वचन सुनकर लकड़हारा बोला- हे प्रभो! मुझे लकड़ी बेचकर इतना पैसा नहीं मिलता जिससे भोजन के उपरान्त कुछ बचा सकूं। मैंने रात्रि में अपनी स्त्री को व्याकुल देखा है। मेरे पास कुछ भी नहीं जिससे उसकी खबर मंगा सकूं। साधु ने कहा- हे लकड हारे! तुम किसी बात की चिन्ता मत करो। बृहस्पति के दिन तुम रोजाना की तरह लकडि यां लेकर शहर को जाओ। तुमको रोज से दुगुना धन प्राप्त होगा जिससे तुम भली-भांति भोजन कर लोगे तथा बृहस्पतिदेव की पूजा का सामान भी आ जायेगा। इतना कहकर साधु अन्तर्ध्यान हो गए। धीरे-धीरे समय व्यतीत होने पर फिर वही बृहस्पतिवार का दिन आया। लकड़हारा जंगल से लकड़ी काटकर किसी भी शहर में बेचने गया उसे उस दिन और दिन से अधिक पैसा मिला। राजा ने चना गुड आदि लाकर गुरुवार का व्रत किया। उस दिन से उसके सभी क्लेश दूर हुए परन्तु जब दुबारा गुरुवार का दिन आया तो बृहस्पतिवार का व्रत करना भूल गया। इस कारण बृहस्पति भगवान नाराज हो गए।

उस दिन से उस नगर के राजा ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया तथा शहर में यह घोषणा करा दी कि कोई भी मनुष्य अपने घर में भोजन न बनावे न आग जलावे समस्त जनता मेरे यहां भोजन करने आवे। इस आज्ञा को जो न मानेगा उसके लिए फांसी की सजा दी जाएगी। इस तरह की घोषणा सम्पूर्ण नगर में करवा दी गई। राजा की आज्ञानुसार शहर के सभी लोग भोजन करने गए। लेकिन लकड़हारा कुछ देर से पहुंचा इसलिए राजा उसको अपने साथ घर लिवा ले गए और ले जाकर भोजन करा रहे थे तो रानी की दृष्टि उस खूंटी पर पड़ी जिस पर उसका हार लटका हुआ था। वह वहां पर दिखाई न दिया। रानी ने निश्चय किया कि मेरा हार इस मनुष्य ने चुरा लिया है। उसी समय सिपाहियों को बुलाकर उसको कारागार में डलवा दिया। जब लकड हारा कारागार में पड गया और बहुत दुखी होकर विचार करने लगा कि न जाने कौन से पूर्व जन्म के कर्म से मुझे यह दुःख प्राप्त हुआ है और उसी साधु को याद करने लगा जो कि जंगल में मिला था। उसी समय तत्काल बृहस्पतिदेव साधु के रूप में प्रकट हो और उसकी दशा को देखकर कहने लगे- अरे मूर्ख! तूने बृहस्पतिदेव की कथा नहीं करी इस कारण तुझे दुःख प्राप्त हुआ है। अब चिन्ता मत कर बृहस्पतिवार के दिन कारागार के दरवाजे पर चार पैसे पड़े मिलेंगे। उनसे तू बृहस्पतिदेव की पूजा करना तेरे सभी कष्ट दूर हो जायेंगे। बृहस्पति के दिन उसे चार पैसे मिले। लकड हारे ने कथा कही उसी रात्रि को बृहस्पतिदेव ने उस नगर के राजा को स्वप्न में कहा- हे राजा! तूमने जिस आदमी को कारागार में बन्द कर दिया है वह निर्दोष है। वह राजा है उसे छोड देना। रानी का हार उसी खूंटी पर लटका है। अगर तू ऐसा नही करेगा तो मैं तेरे राज्य को नष्ट कर दूंगा। इस तरह रात्रि के स्वप्न को देखकर राजा प्रातःकाल उठा और खूंटी पर हार देखकर लकड़हारे को बुलाकर क्षमा मांगी तथा लकड हारे को योग्य सुन्दर वस्त्र आभूषण देकर विदा कर बृहस्पतिदेव की आज्ञानुसार लकड़हारा अपने नगर को चल दिया। राजा जब अपने नगर के निकट पहुंचा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। नगर में पहले से अधिक बाग, तालाब और कुएं तथा बहुत सी धर्मशाला मन्दिर आदि बन गई हैं। राजा ने पूछा यह किसका बाग और धर्मशाला है तब नगर के सब लोग कहने लगे यह सब रानी और बांदी के हैं। तो राजा को आश्चर्य हुआ और गुस्सा भी आया। जब रानी ने यह खबर सुनी कि राजा आ रहे हैं तो उसने बांदी से कहा कि- हे दासी! देख राजा हमको कितनी बुरी हालत में छोड गए थे। हमारी ऐसी हालत देखकर वह लौट न जायें इसलिए तू दरवाजे पर खड़ी हो जा। आज्ञानुसार दासी दरवाजे पर खड़ी हो गई। राजा आए तो उन्हें अपने साथ लिवा लाई। तब राजा ने क्रोध करके अपनी रानी से पूछा कि यह धन तुम्हें कैसे प्राप्त हुआ है तब उन्होंने कहा- हमें यह सब धन बृहस्पतिदेव के इस व्रत के प्रभाव से प्राप्त हुआ है।

राजा ने निश्चय किया कि सात रोज बाद तो सभी बृहस्पतिदेव का पूजन करते हैं परन्तु मैं प्रतिदिन दिन में तीन बार कहानी कहा करूंगा तथा रोज व्रत किया करूंगा। अब हर समय राजा के दुपट्‌टे में चने की दाल बंधी रहती तथा दिन में तीन बार कहानी कहता। एक रोज राजा ने विचार किया कि चलो अपनी बहन के यहां हो आवें। इस तरह निश्चय कर राजा घोड़े पर सवार हो अपनी बहन के यहां को चलने लगा। मार्ग में उसने देखा कि कुछ आदमी एक मुर्दे को लिए जा रहे हैं उन्हें रोककर राजा कहने लगा- अरे भाइयों! मेरी बृहस्पतिदेव की कथा सुन लो। वे बोले - लो! हमारा तो आदमी कर गया है इसको अपनी कथा की पड़ी है। परन्तु कुछ आदमी बोले- अच्छा कहो हम तुम्हारी कथा भी सुनेंगे। राजा ने दाल निकाली और जब कथा आधी हुई थी कि मुर्दा हिलने लग गया और जब कथा समाप्त हो गई तो राम-राम करके मनुष्य उठकर खड़ा हो गया।

आगे मार्ग में उसे एक किसान खेत में हल चलाता मिला। राजा ने उसे देख और उससे बोला- अरे भइया! तुम मेरी बृहस्पतिवार की कथा सुन लो। किसान बोला जब तक मैं तेरी कथा सुनूंगा तब तक चार हरैया जोत लूंगा। जा अपनी कथा किसी और को सुनाना। इस तरह राजा आगे चलने लगा। राजा के हटते ही बैल पछाड़ खाकर गिर गए तथा उसके पेट में बड़ी जोर का दर्द होने लगा। उस समय उसकी मां रोटी लेकर आई उसने जब यह देखा तो अपने पुत्र से सब हाल पूछा और बेटे ने सभी हाल कह दिया तो बुढ़िया दौड़ी-दौड़ी उस घुड़सवार के पास गई और उससे बोली कि मैं तेरी कथा सुनूंगी तू अपनी कथा मेरे खेत पर चलकर ही कहना। राजा ने बुढ़िया के खेत पर जाकर कथा कही जिसके सुनते ही वह बैल उठ खड़ हुए तथा किसान के पेट का दर्द भी बन्द हो गया। राजा अपनी बहन के घर पहुंचा। बहन ने भाई की खूब मेहमानी की। दूसरे रोज प्रातःकाल राजा जगा तो वह देखने लगा कि सब लोग भोजन कर रहे हैं। राजा ने अपनी बहन से कहा- ऐसा कोई मनुष्य है जिसने भोजन नहीं किया हो, मेरी बृहस्पतिवार की कथा सुन ले। बहिन बोली- हे भैया! यह देश ऐसा ही है कि पहले यहां लोग भोजन करते हैं बाद में अन्य काम करते हैं। अगर कोई पड़ोस में हो तो देख आउं। वह ऐसा कहकर देखने चली गई परन्तु उसे कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जिसने भोजन न किया हो अतः वह एक कुम्हार के घर गई जिसका लड का बीमार था। उसे मालूम हुआ कि उनके यहां तीन रोज से किसी ने भोजन नहीं किया है। रानी ने अपने भाई की कथा सुनने के लिए कुम्हार से कहा वह तैयार हो गया। राजा ने जाकर बृहस्पतिवार की कथा कही जिसको सुनकर उसका लड का ठीक हो गया अब तो राजा की प्रशंसा होने लगी।

एक रोज राजा ने अपनी बहन से कहा कि हे बहन! हम अपने घर को जायेंगे। तुम भी तैयार हो जाओ। राजा की बहन ने अपनी सास से कहा। सास ने कहा हां चली जा। परन्तु अपने लड़कों को मत ले जाना क्योंकि तेरे भाई के कोई औलाद नहीं है। बहन ने अपने भइया से कहा- हे भइया! मैं तो चलूंगी पर कोई बालक नहीं जाएगा। राजा बोला जब कोई बालक नहीं चलेगा, तब तुम क्या करोगी। बड़े दुखी मन से राजा अपने नगर को लौट आया। राजा ने अपनी रानी से कहा हम निरवंशी हैं। हमारा मुंह देखने का धर्म नहीं है और कुछ भोजन आदि नहीं किया। रानी बोली- हे प्रभो! बृहस्पतिदेव ने हमें सब कुछ दिया है। हमें औलाद अवश्य देंगे। उसी रात को बृहस्पतिदेव ने राजा से स्वप्न में कहा- हे राजा उठ। सभी सोच त्याग दे तेरी रानी गर्भ से है। राजा की यह बात सुनकर बड़ी खुशी हुई। नवें महीने में उसके गर्भ से एक सुन्दर पुत्र पैदा हुआ। तब राजा बोला- हे रानी! स्त्री बिना भोजन के रह सकती हे बिना कहे नहीं रह सकती। जब मेरी बहिन आवे तुम उससे कुछ कहना मत। रानी ने सुनकर हां कर दिया।

जब राजा की बहिन ने यह शुभ समाचार सुना तो वह बहुत खुश हुई तथा बधाई लेकर अपने भाई के यहां आई, तभी रानी ने कहा- घोड़ा चढ कर तो नहीं आई, गधा चढ़ी आई। राजा की बहन बोली- भाभी मैं इस प्रकार न कहती तो तुम्हें औलाद कैसे मिलती। बृहस्पतिदेव ऐसे ही हैं, जैसी जिसके मन में कामनाएं हैं, सभी को पूर्ण करते हैं, जो सदभावनापूर्वक बृहस्पतिवार का व्रत करता है एवं कथा पढ ता है अथवा सुनता है दूसरो को सुनाता है बृहस्पतिदेव उसकी मनोकामना पूर्ण करते हैं।

भगवान बृहस्पतिदेव उसकी सदैव रक्षा करते हैं संसार में जो मनुष्य सदभावना से भगवान जी का पूजन व्रत सच्चे हृदय से करते हैं तो उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं जैसी सच्ची भावना से रानी और राजा ने उनकी कथा का गुणगान किया तो उनकी सभी इच्छायें बृहस्पतिदेव जी ने पूर्ण की थीं। इसलिए पूर्ण कथा सुनने के बाद प्रसाद लेकर जाना चाहिए। हृदय से उसका मनन करते हुए जयकारा बोलना चाहिए।

॥ बोलो बृहस्पतिदेव की जय। भगवान विष्णु की जय॥

बृहस्पतिदेव की कथा

प्राचीन काल में एक ब्राह्‌मण रहता था, वह बहुत निर्धन था। उसके कोई सन्तान नहीं थी। उसकी स्त्री बहुत मलीनता के साथ रहती थी। वह स्नान न करती, किसी देवता का पूजन न करती, इससे ब्राह्‌मण देवता बड़े दुःखी थे। बेचारे बहुत कुछ कहते थे किन्तु उसका कुछ परिणाम न निकला। भगवान की कृपा से ब्राह्‌मण की स्त्री के कन्या रूपी रत्न पैदा हुआ। कन्या बड़ी होने पर प्रातः स्नान करके विष्णु भगवान का जाप व बृहस्पतिवार का व्रत करने लगी। अपने पूजन-पाठ को समाप्त करके विद्यालय जाती तो अपनी मुट्‌ठी में जौ भरके ले जाती और पाठशाला के मार्ग में डालती जाती। तब ये जौ स्वर्ण के जो जाते लौटते समय उनको बीन कर घर ले आती थी।

एक दिन वह बालिका सूप में उस सोने के जौ को फटककर साफ कर रही थी कि उसके पिता ने देख लिया और कहा - हे बेटी! सोने के जौ के लिए सोने का सूप होना चाहिए। दूसरे दिन बृहस्पतिवार था इस कन्या ने व्रत रखा और बृहस्पतिदेव से प्रार्थना करके कहा- मैंने आपकी पूजा सच्चे मन से की हो तो मेरे लिए सोने का सूप दे दो। बृहस्पतिदेव ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। रोजाना की तरह वह कन्या जौ फैलाती हुई जाने लगी जब लौटकर जौ बीन रही थी तो बृहस्पतिदेव की कृपा से सोने का सूप मिला। उसे वह घर ले आई और उसमें जौ साफ करने लगी। परन्तु उसकी मां का वही ढंग रहा। एक दिन की बात है कि वह कन्या सोने के सूप में जौ साफ कर रही थी। उस समय उस शहर का राजपुत्र वहां से होकर निकला। इस कन्या के रूप और कार्य को देखकर मोहित हो गया तथा अपने घर आकर भोजन तथा जल त्याग कर उदास होकर लेट गया। राजा को इस बात का पता लगा तो अपने प्रधानमंत्री के साथ उसके पास गए और बोले- हे बेटा तुम्हें किस बात का कष्ट है? किसी ने अपमान किया है अथवा और कारण हो सो कहो मैं वही कार्य करूंगा जिससे तुम्हें प्रसन्नता हो। अपने पिता की राजकुमार ने बातें सुनी तो वह बोला- मुझे आपकी कृपा से किसी बात का दुःख नहीं है किसी ने मेरा अपमान नहीं किया है परन्तु मैं उस लड़की से विवाह करना चाहता हूं जो सोने के सूप में जौ साफ कर रही थी। यह सुनकर राजा आश्चर्य में पड ा और बोला- हे बेटा! इस तरह की कन्या का पता तुम्हीं लगाओ। मैं उसके साथ तेरा विवाह अवश्य ही करवा दूंगा। राजकुमार ने उस लड की के घर का पता बतलाया। तब मंत्री उस लड की के घर गए और ब्राह्‌मण देवता को सभी हाल बतलाया। ब्राह्‌मण देवता राजकुमार के साथ अपनी कन्या का विवाह करने के लिए तैयार हो गए तथा विधि-विधान के अनुसार ब्राह्‌मण की कन्या का विवाह राजकुमार के साथ हो गया।

कन्या के घर से जाते ही पहले की भांति उस ब्राह्‌मण देवता के घर में गरीबी का निवास हो गया। अब भोजन के लिए भी अन्न बड़ी मुश्किल से मिलता था। एक दिन दुःखी होकर ब्राह्‌मण देवता अपनी पुत्री के पास गए। बेटी ने पिता की दुःखी अवस्था को देखा और अपनी मां का हाल पूछा। तब ब्राह्‌मण ने सभी हाल कहा। कन्या ने बहुत सा धन देकर अपने पिता को विदा कर दिया। इस तरह ब्राह्‌मण का कुछ समय सुखपूर्वक व्यतीत हुआ। कुछ दिन बाद फिर वही हाल हो गया। ब्राह्‌मण फिर अपनी कन्या के यहां गया और सारा हाल कहा तो लड की बोली- हे पिताजी! आप माताजी को यहां लिवा लाओ। मैं उसे विधि बता दूंगी जिससे गरीबी दूर हो जाए। वह ब्राह्‌मण देवता अपनी स्त्री को साथ लेकर पहुंचे तो अपनी मां को समझाने लगी- हे मां तुम प्रातःकाल प्रथम स्नानादि करके विष्णु भगवान का पूजन करो तो सब दरिद्रता दूर हो जावेगी। परन्तु उसकी मांग ने एक भी बात नहीं मानी और प्रातःकाल उठकर अपनी पुत्री के बच्चों की जूठन को खा लिया। इससे उसकी पुत्री को भी बहुत गुस्सा आया और एक रात को कोठरी से सभी सामान निकाल दिया और अपनी मां को उसमें बंद कर दिया। प्रातःकाल उसे निकाला तथा स्नानादि कराके पाठ करवाया तो उसकी मां की बुद्धि ठीक हो गई और फिर प्रत्येक बृहस्पतिवार को व्रत रखने लगी। इस व्रत के प्रभाव से उसके मां बाप बहुत ही धनवान और पुत्रवान हो गए और बृहस्पतिजी के प्रभाव से इस लोक के सुख भोगकर स्वर्ग को प्राप्त हुए।

सब बोलो विष्णु भगवान की जय। बोलो बृहस्पति देव की जय

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Saturday 24 September 2016

JIN MATA TEMPLE SIKAR,RAJASTHAN



Jeen Mata Temple Dham Sikar Rajasthan India

Jin Mata (Jeen Mata) Temple is situated in Raiwara, District: Sikar, Rajasthan. The place can easily be accessed from Jaipur just 110 Km far. Among oldest worship places in Rajasthan, India. Millions of devotees visit the dham during the year, & main attractions are Navratra, that occurs bi-annually. In english calendar Month of April and November.
Jeen Mata Temple Dham Sikar Rajasthan India


Rajasthan is land of worship for many deities, like Shri Salasar balaji hanuman temple, Shri Shri Khatu Shyam Baba temple, Shri Pushkar Ji, the only temple of Brahmaji in world and Gharib Nawaz Khwaja at Ajmer. Maa Durga is worshipped in various Avataars & Roop. Jeen Mata is among various Roop of Maa Durga.
Jin Mata is also famous for fulfilling wishes of her devotees, and is popularly knowns as MANAT WALI MATA Mother who fulfill wishes.

Jeen Mata Dham is an organisation mainly arranging and working for the development of the JEEN MATA Parisar Premises. During Jeen Mata temple Fair ,Melas, Jeen Mata Dham arranges for temporary canteen during  Jeen Mata Mela period and provides for quality food at very nominal or subsidized rates for devotees and visitor, those who have come from far flung places, for Jeen Mata temple Darshan.  Several Non-profit and charitable trust have mushroomed providing lodging facility free of charge to thousand of devotees. Shri GANESH MANDIR DHARAMSALA is one of the best & beautiful Dharam Sala I have ever Stayed.

JEEN MATA KA MANDIR माँ जीण का भव्य मंदिर

माँ जीण !कलयुग! में शक्ति के  अवतार का भव्य मंदिर  सीकर जीले की  रेवासा पहाडियों में स्थित है। ये जयपुर (राजस्थान ) से लगभग 115 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है॥ ये भव्य मंदिर  चारों  तरफ़ से ऊँची ऊँची पहाडियों से घिरा हुआ है। बरसात हो या  सावन का महिना इन दिनों  पहाडो की हरियाली देखने  लायक होती है। राष्ट्रिय  राजमार्ग 11 से ये लगभग 10 या 12 किलोमीटर की दुरी पर है। जहाँ राणोली  से माता के दरबार में दर्शन के लिए अच्छी सड़क बनाई गयी है.

जीण माता के इतिहास के बारे में अभी कोई सही जानकारी नहीं है . लेकिन कहा और सुना जाता है की माता का मंदिर लगभग १०० साल पुराना है.
कथनानुसार जीण माता का अवतार चुरू जीले के घांघू गाँव में हुआ था। जीण माता के बड़े भाई का नाम हर्ष था । माता जीण को दुर्गा माँ शक्ति का अवतार माना गया है और हर्ष को भगवन शिव का अवतार माना गया है॥ कहते है की दोनों बहन भाइयो में बहुत प्यार था लेकिन जीण माता की भाभी के कारण जीण माता ने अपना घर त्याग दिया .और इन पहाडियों पर आकर तपस्या करने लगी .और  पीछे पीछे हर्षनाथ भी अपनी लाडली बहन को मानाने के लिए आए लेकिन जीण माता जीद्द करने लगी साथ जाने से मना कर दिया ।
 हर्षनाथ का मन बहुत उदास हो गया और उन्होंने कहा की बहन तू नहीं जाएगी तो में भी नहीं जाउगा और  वे भी वहां से कुछ दूर जाकर वहां पर तपस्या करने लगे।

दोनों भाई बहन के बीच हुई बातचीत का सुलभ वर्णन आज भी राजस्थान के लोक गीतों में मिलता है॥
भगवन हर्षनाथ का भव्य मन्दिर आज भी राजस्थान की अरावली पर्वतमाला में स्थित है।

यहाँ में एक लोक कथा का वर्णन करना चाहूँगा।

दिल्ली के बादशाह औरंगजेब ने एक बार इस पर्वत माला  पर आक्रमण किया और पुरे मंदिरों गुफाओंऔर अनेक भवनों को क्षत विक्षत कर दिया। फ़िर वो माता के मदिर की और बढ़ा। कहा जाता है की  तब माता ने भंवरा मधुमखियों से उसकी पूरी सेना पर आक्रमण करवा दिया  
मधुमखियों के दंश  से बेहाल पूरी सेना और  घोडे मैदान छोड़कर भाग गए।
 तब औरंगजेब ने हारकर माता के चरणों में शीश नवाया और  क्षमा याचना की। तब जाकर कहीं उसका पीछा छूटा । माता की शक्ति को जानकर उसने वहां पे भंवरो की रानी के नाम से शुद्ध खालिस सोने की बनी मूर्ति भेंट की और "अखंड ज्योत जलाई" और आज शताब्दियों के बाद भी वो अखंड ज्योत जल रही है।

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कहा जाता है की जीण माता के चरणों में शीश नवाकर जो भी दिल से  से माँगा जाता है वो जरुर पुरा होता।
चैत्र और आश्विन माह में नवरात्री पर्व पर लाखों की संख्या में श्रदालु जीणमाता के दर्शन करने आते है। कुछ लोग तो  नौ दिनों तक मन्दिर  पूजा करते है...
शरद पूर्णिमा और फाल्गुन माह में हर्ष भैरूं मेला यहाँ के मुख्य आकर्षण हटा है  है॥

JEEN MATA TEMPLE Aarti Timings

सुबह :- ४.०० बजे
शाम :- ११.०० बजे तक
Jeen Mata's fair held twice of the year in navratri of chaitra and ashwin months of hindu calender.
जीन माता का मेला  हर साल चैत्र और अश्विन महीने के नवरात्री में भरता  हे.

Sunday 18 September 2016

Navratri Puja Festival Celebrations

Navratri Puja Festival Celebrations

The word Navaratri literally means nine nights in Sanskrit; 'Nav'– Nine and 'Ratri' – nights.
Navratri is a Hindu festival celebrated for nine days worshipping the various forms of Durga.
'Nava-ratri' is one of the most important Hindu festivals in the country.  It is celebrated with immense zeal and enthusiasm all over the country. 
Navratri Puja Festival Celebrations

Traditions of Navaratri


According to Hindu calender year, Navaratri is celebrated five times in a year: 
They are:--

(A) Magha (or) Shishir Navratri(January–February)(gupt navratri)


(B) Vasant (or) Chaitra Navratri(March–April)(prakat navratri)


(C) Ashaadh (or) Varsha Ritu Navratri(June–July)(gupt navratri)


(D) Sharad (or) Ashwin Navratri,  (September–October)  (prakat navratri)


(E) Paush Navratri(December-January)  (gupt navratri)


These are further divided into Prakat and Gupt Navaratri. 
From the above mentioned Navaratri,  

Vasant and Sharad Navratri are Prakat Navaratri; 
while Magha, Ashadh and Paush Navaratri are called Gupt Navaratri.
Though Ashwin Navratri and the Vasanta Navratri of the Chaitra are very important and known to everyone, the other three navratras are known as gupt navratra are equally significant and are meant for sadhaks. 

(A) Magha Navaratri:   

Magha Navratri, (also referred Gupta Navratri), is nine days dedicated to Goddess Saraswati Devi in the month of Magha (January–February).  Magha Navaratri is observed during the Magha Shukla Paksha (waxing phase of moon). Magha navratri puja act as a shield from danger, injury, destruction or damage and person obtains riddhi & siddhi.These are very auspicious days for the tantriks, sadhaks for saadhna and also for any other specific tantrik pooja to resolve the materialistic problems.

Magha Navratri, also known as Gupta Navratri, is nine days period dedicated to the nine forms of Shakti or mother Goddess. It falls in the month of Magh during January or February. Magh Navratri, which is less known in most places, is mainly observed in North Indian states like Punjab, Haryana, Himachal Pradesh, Uttar Pradesh and Uttarakhand. 

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(B) Vasanta (or)Basanta (or)Vasantic (or) Chaitra Navratras (or)Ram Navratras:-

This is the festival of nine days dedicated to the nine forms of Shakti (Mother Goddess) in the spring season  (March–April). It is celebrated in Chaitra lunar month during Shukla Paksha (waxing phase of moon). 

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(C) Ashadha or Gayatri or Shakambhari Navratri (Gupt Navratri), is nine days dedicated to the nine forms of Shakti (Mother Goddess) in the month of Ashaadh (June–July). It is observed during Shukla Paksha (waxing phase of moon).

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(D) Sharada Navaratri: This is the most important of the Navratris. It is simply called Maha Navratri (the Great Navratri) and is celebrated in the month of Ashwin. Also known as Sharad Navaratri, as it is celebrated during Sharad (Ashwin lunar month, beginning of winter, September– October).

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(E) Paush Navaratri: Paush (Pushya) Navratri is nine days dedicated to Goddess Shakambari Mata in the month of Paush (December–January). Paush Navaratri is observed during the Paush Shukla Paksha (waxing phase of moon). 

Navratri in Temple :

Special Shata Chandi Homam, Abhishekam, Alankaram, Suvasini puja, Kanya puja, Laksharchanai and Aarti will be held in temples.
Veda Parayanam, Lalitha Sahasranamam, Sri Devi Mahatmayam, Sri Devi Bhagavatam, Abhirami Andhathi and other hymns of goddess will be chanted, sung and read with great devotion.
It is celebrated twice a year -once in Chaitra (March-April) and the other in Ashwin (September-October). Navartra literally means 'nine auspicious nights'. It is actually the worship of the Goddess of power in order to seek her protection from any possible kind of threat and calamities that may destroy the peaceful life of people on earth. As she is the goddess of power, she is believed to have the power of creation, preservation and destruction. 
SIGNIFICANCE Navratri Puja
The beginning of spring and the beginning of autumn are two very important junctions of climatic and solar influence. These two periods are taken as sacred opportunities for the worship of the Divine Mother. The dates of the festival are determined according to the lunar calendar.


Vasanta (or)Basanta (or)Vasantic (or) Chaitra Navratras (or)Ram


This is celebrated during Vasanta Rhitu (beginning of summer) (March- April). This is also known as Chaitra navaratri as it falls during the lunar month of Chaitra.

** The Nine Days Navaratri Celebrations and rituals are similar in Chaitra Navaratras as well as Sharad Navaratras.

Navaratri is separated into sets of three days i.e. into three sets. These sets are made in order to adore different facets of the supreme goddess.

* Goddess Durga is worshipped during the first three days.
* Goddess Lakshmi is worshipped during the next three days
* Goddess Saraswathi is worshipped during the last three days.

She is also worshipped under nine different names for the nine days in Navratri. Every day, she assumes a new character, a new look and a new duty. She is worshipped as ---

1. Shailputri,
2. Brahmacharini,
3. Chandraghanta,
4. Kushmanda,
5. Skanda Mata,
6. Katyayani,
7. Kalratri,
8. Maha Gauri and
9. Siddhidatri.

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The first form of Goddess Durga is called Shailputri . 

She is considered  the daughter of the Himalayas (King of the Mountain). She is a form of
Shakti, the consort of Lord Shiva.She is the mother of Ganesha and Kartikeya.

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2. Second Day Navratra Pooja

The second form of Goddess Durga is known as 'Brahmacharini'. 

Her name is  derivative of the word 'Brahma', which means 'Tapa' or penace. She is also a form of Uma or Parvati, a form of Mata Shakti.She gives the message of pure love to the world;
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On the third day the goddess is worshipped as Chandraghanta. 

She is the  symbolic representation of beauty and bravery. She establishes Justice and wears crescent moon on Her head;
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Kushmanda, is the form of the goddess which is worshipped on the fourth  day.

It is believed that Kushmanda has created the entire Universe by her laugh. She provides the basic necessities to the world.
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On the fifth day, the form of Goddess is called Skand Mata. 

She is  actually called so because she is here represented as the mother of Skanda, the chief warrior of the Gods army. She gives the gift of differentiation of right from wrong to the world.
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On the sixth day, the goddess is worshipped as Katyayani. 

Seated on her vehicle lion, Katyayani has three eyes and four hands.She persistently battles against the evil and deceitful entities.
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On the seventh day, the Goddess is worshipped as 'Kalratri'.

As the name suggests, Kalrati is as black as a dark night. She has four hands, she is meant to make the devotees fearless.She killed Raktabeej ( a demon who produced a demon from every drop of blood that fell from his body. Goddess eventually licked the blood before it could reach the ground and hence conquered him).
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On the eight day, the Mata Rani is worshipped as 'Maha Gauri'. 
She is considered to extremely beautiful, white like snow and accessorized with white colored ornaments. She represents calmness and exhibits wisdom.She also liberates the world of evil forces;
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On the ninth day, Durga is worshipped as Siddhidatri. 
It is believed she consists of all the eight siddhis. She lives on lotus and is worshipped by all the Rishis-Munis, Siddhas, Sadhakas and Yogis. She is a treasure house of Mystic Powers (Yantra Tantra) and Knowledge (Gyaan).

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*- Picture or image of Ma Durga
*- Durga Sapthashati
*- Fresh water in a kalash, mango leaves, coconut
*- Roli (Vermillion), moli, Akshat (Rice), paan, betle nut (Supari)
*- Cloves, cardamom, sindoor, abir, gulal
*- Dhoop, deepak, matchsticks
*- Flowers
*- Fruits and sweets
*- Panchpatra with small spoon or achmani
*- Asan to sit


* Ghatasthapana-- Navratri rituals begin with planting barley or wheat kernels called Juwara in a bed of mud on the first day of Navratri. It is watered everyday all through the nine days of Navratri.

* Make a heap of wheat on a platform then a kalash filled with water and roli is placed over it. The kalash is wrapped with red cloth and Moli is tied around the kalash neck. A coconut is placed on the mouth of kalash and mango tree leaves are placed around the coconut.

* Now place Durga Ma image on the podium and worship with roli, rice, flowers, belpatr, sindoor, abhir and gulal. Offer sweets or complete meal to mother goddess.

* Light dhoop and Deepak in front of Ma and perform her aarti. Recite Durga Saptshati or Devi Kavach and Stuti for invoking protection by Devi.

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* On the festive occasion of Navratri, fast is observed by people for seven or eight days, depending upon when they want to conduct the Kanchika Pujan (when young girls are worshipped). The devotees, who have observed fast, would get up early in the morning, take bath and offer prayers to the deity.

* People follow a specific diet for Navratri, if they haven't observed a nirjal (waterless) fast. Most people nowadays perform partial fasting.

* They would abstain from non-vegetarian food, alcohol and those dishes that are made of common salt or any kind of spice. Singhare ka atta (or) kuttu ka atta is used to prepare rotis or puris, for the fast.

* One may drink beverages like tea, coffee and milk, on Navratri.

* Dishes made of sago and potato is generally consumed by the people, when they observe fast on Navratri.

* Sendha namak (rock salt) is used instead of common salt, for cooking on the festival. All fruits and foodstuff made of fruits are eaten during the seven days. Nowadays, ready-to-eat snacks are available in the stores, especially prepared for Navratri.

* In addition to this, certain restaurants in the northern parts of India would offer special menu for the people, who have observed fast on Navratri.

* After seven days of fasting, people would break their fast on the eighth day - Ashtami - by worshipping young girls. The ritual of offering prasad to the young girls is called Kanchika Pujan or Kanjak.

* As per the tradition, puris (deep fried Indian bread), halwa (sweet dish made of suji) and Bengal gram are served to the young girls, called upon by the people who have observed fast.

* After seeking the blessings of the young girls (kanchikayen), the devotees would break their fast by consuming the prasad (puri, halwa and sabzi) that they have prepared for them.

* While this is the tradition followed by majority of people, Navratri fast is also broken on ninth day (Navami), wherein the fast is observed until Ashtami. The same procedure is followed in that case as well.

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* KANYA PUJAN (or) KANJAK (or) KUMARI PUJAN (DURGA-ASHTAMI)

During the Navratra especially on the eighth day and ninth day, worship of small girl-child is customary. The girl child is worshipped with complete devotion, after purifying them by the chanting of mantras and she is made to seat on a special pedestal. She is worshipped by offering ‘akshat‘ (rice grains) and by burning incense sticks. She is worshipped because, according to the philosophy of ‘Striyah Samastastava Devi Bhedah’, women symbolize ‘Mahamaya‘ (The goddess Durga). Even among these a girl child is considered to be the purest, because of her innocence Hinduism believes in the universal creative forces to be feminine gender.

The very original force is Mahamaya whose inspiration created the gods and the rest of the cosmos.All the major and minor energies and forces are represented by various goddesses. Navratra deity Durga and all her dimensions are believed to be the manifestations of the same basic inspiration Mahamaya.

Thus, a virgin girl is the symbol of the pure basic creative force according to this philosophy.

* For acquiring knowledge worshipper should worship a Brahmin girl child. 

* For acquiring power he should worship a Kshatriya-girl child.

* For acquiring wealth and prosperity he should worship a girl child belonging to a Vaishya family.

* For attaining Tantrik-power, Sammohan (hypnotizing) etc.he should worship a shudra-girl-child

Navratri Prasad:


During Navratri - Sundal, Appam, Poori, Puttu, Sooji, Pongal, Halwa will be offered to Goddess. Sundal is prepared soaking the pulses in water, then cooking and roasting the pulses. List of pulses include - Kondakadalai (Channa), karamani, pasiparuppu, kadalai paruppu, groundnut, beans sundal etc

Navarathri literally means nine nights. Goddess Mother in various forms like Sri Durga, Sri Lakshmi, Sri Saraswathi will be worshipped with great devotion during Navaratri

Next Year Navratri: 
In 2017, Navratri is from September 21 (Thursday) to September 29, 2017 (Friday);
Maha Shasti - Sep 26, 2017 (Tuesday); 
Maha Saptami - Sep 27th, 2017 (Wednesday); 
Maha Ashtami - September 28, 2017 (Thursday); 
Maha Navami - Sep 29th, 2017 (Friday) 
Vijayadasami - Sep 30, 2017 (Saturday)

In 2018, Navratri is from October 9 (Tuesday) to October 18, 2018 (Thursday);
Maha Shasti - Oct 14, 2018 (Sunday); 
Maha Saptami - Oct 15th 2018 (Monday); 
Maha Ashtami - October 17, 2018 (Wednesday); 
Maha Navami - Oct 18th 2018 (Thursday) 
Vijayadasami - Oct 19, 2018 (Friday)
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